... आणि माझी काशी झाली! (छायाचित्रे)
माझ्या गॅलरीतून दिसणारा सूर्योदयाचा नजारा
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सर्वप्रजातीसहिष्णू मर्कटपंत
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गंगाकिनारी
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भीष्म पितामह
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पवित्र गंगा
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एका गंगाघाटाच्या भिंतीवरील ग्राफिटी
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जय गुरु देव!
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पाण्यात बुडालेलं मंदिर
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अंत्यविधींसाठीची लाकडे
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पावित्र्याला हातभार
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भिंतीच्या डोक्यावर वृक्षराज
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स्पिरिच्युअल कॅफे
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आणखी ग्राफिटी
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जटाधारी
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सालोन दे द विष्णू
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गंगेची आरती
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आरतीसाठी बोटींतून हजेरी लावणारे भक्त
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प्रतिक्रिया
फोटो पाहून अस्वस्थ नी उदास
फोटो पाहून अस्वस्थ नी उदास वाटलं
कोणत्याही छोट्या शहराला
कोणत्याही छोट्या शहराला लाजवेल इतपत कचरा वाराणशीत बघून 'बडोदा डेट' आठवली.
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सांगोवांगीच्या गोष्टी म्हणजे विदा नव्हे.
छायाचित्रे छानच आहेत. वरून
छायाचित्रे छानच आहेत. वरून तिसर्या फोटोमध्ये त्या बांबूवरच्या टोपल्या कशासाठीच्या आहेत?
माहिष्मती साम्राज्यं अस्माकं अजेयं
बघुया मोदिजी कसा कायापालट
बघुया मोदिजी कसा कायापालट करतात ते. असिमानंदांचे आंदोलन यथोचीतच होते. चित्रे छानच आहेत. भारतातील कोणत्याही दाट लोकवस्तिच्या भागातुन नदी गेली की त्याची अशीच अवस्था केली जाते. अर्थात काही सन्माननीय अपवाद पाहिले आहेत पण सोचताहुं (काळाच्या ओघात) वोह भी कही मैला न हो जाये.
actions not reactions..!...!
जबरदस्त फोटो! काशीला जायलाच
जबरदस्त फोटो! काशीला जायलाच पाहिजे!
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It is better to have questions which don't have answers, than having answers which cannot be questioned.
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- #२चा फोटो पाहून परममित्र भेटल्याचा आनंद झाला.
- #६मधील ग्राफिटीमधील त्या तोंडावर पट्टी बांधलेल्या बाईने स्टॅच्यू ऑफ लिबर्टी पोझ का घेतली आहे? (कदाचित 'स्टॅच्यू ऑफ लिबर्टी' आणि 'न्यायदेवता आंधळी असते'वाल्या दोन्हीं संकल्पनांचे हायब्रिड/क्रॉसकनेक्शन झाले काय?)
- #७मधील ग्राफिटीकडे पाहून "हम बर्गरकिंग१ वहीं बनायेंगे" असे (उगाचच) जोरात ओरडून बोंबलावेसे वाटले.
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१ हल्ली ष्टेकहौसे फारशी परवडत नाहीत.
फोटो म्हणून सुंदर ,
फोटो म्हणून सुंदर , वस्तुस्थिती ( पवित्र गंगा,पावित्र्याला हातभार) म्हणून लाज वाटायला लावणारे फोटो.
शेवटच्या फोटोत वातावरणाची जादू जाणवते. आणि "गंगेची आरती" हा फोटो पाहताना रथाचे घोडे आणि त्याना कंट्रोल करणारा सारथी (ईथे आरती करणारे पुजारी) हे चित्र पट्कन नजरेसमोर आलं.